Delhi का इतिहास
आज की दिल्ली को देख के क्या आप अनुमान लगा सकते है की
महाभारत काल में भी दिल्ली बसहा हुआ थ. पहेले तोमर, फिर चोहान, गुलाम वंश, में दिल्ली बार बार उजडी और बार-बार बसी.दिल्ली
खिलजियो की या तुग्लाको की, सैय्यदो की या लोघी सासन
की खानी है उसकी वहे झलक आप को इस लेख में मिलेगी. आगे पड़ेगे तो -पता चलेगा की
शेरशा के वक्त दिल्ली का क्या हाल था.हुमायु के दिन पनह का क्या रूप था. शाह्जहा
की दिल्ली का क्या आलम था. और अंग्रेजो के वक्त की दिल्ली और फिर स्वतत्र भारत की
नई दिल्ली कैसे बदती चली गई.
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दिल्ली शहर दुनिया के
सबसे बड़े लोकतंत्र का दिल है. 1000 ई. पू. से पहेले में डूबी एक घडकती राजधानी, राजनीतीक
शक्ति का केंद्र थी. भारत की समझ से बहार, समृधि, संस्त्रितिक, विरासत के ताज में
नगीने की तरहे, दिल्ली एक हजार से अधिक वर्ष के लिये भारत की राजधानी के रूप में
खडी है.
दिल्ली का भूगोल :-
दक्षिण-पश्चिम दिल्ली से विश्वविद्यालय तक दुनिया की सबसे पुरानी अरावली पहाडी
संखला के आधार पर स्थित है.
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इसके इतिहास के दोरान
जन्मे और मानव इतिहास में बहुत बड़े पैमाने पर महान संस्कृती की गिरावट, अनकहे धन
के सिर्जन और भोग और बिभिन धर्मो, जातियों समूहों का संघर्ष और मिश्रित देखा गया
है. इन सभी संस्त्रिती पिरवेश ने शहरी जीवनशैली रीती-रिवाज और परम्पराओं को एक
अनूठी जटिलता दी, जिसका अर्थ निकलने व समझने में एक जीवन लगेगा. शहर की यात्रा हमें
दिल्ली की सबसे बडी तिन वास्तुकारी चमत्कार में मूर्ती पिर्भाव की एक झलक देता है
और क़ुतुब मीनार, लाल किला और हूमयु का मकबरा. दिल्ली की कथा में डूबा लम्बे आकर्सन
और अंधकारमय इतिहास इध्प्रस्थ शहर महाभारत काल का पूर्व शहर है और यहा पर बहूत सी
दिलचस्ब चीजे देखने को है और यह काम करावाने के लिये सुगम स्थान है. इंद्रप्रस्थ
को खण्ड स्क्रपुरी भी कहेते है
नई दिल्ली बसाये जाने से
पहेले इस स्थान को इन्द्र का खेडा भी खा जाता था जनरल कनिंघम ने इंद्रप्रस्थ को
हूमायु के मकबरे से लेकर फिरोजशहा कोटला के बिच का एरिया मन था.
पुराना किला में की गई
खुदाई के दौरान मिले प्रमाण से इतिहास के आरंभिक दौर से पहेले की जानकारी मिली है.
पिछले मास (फरबरी 2014) में
किये गए उत्खनन में कई प्राचीन अवशेष मिले है उत्तरी दिल्ली के भोदगद (नरेला) में
की गई खुदाई के दोरान चित्रित घुसर मिदभंद के नमूने दिल्ली के इतिहास को और भी
प्राचीन कर देते है. (हड़प्पा संस्कृति से)उत्तरी पूर्वी में मंडलो और स्न्वोली में
भी उत्तरी हड़प्पा और पि.जी.डब्ल्यू के प्रमाण मिले है. लाल किले के पास स्थित
सलिमगद किले के अवशेस 1000 बी.सी. के बताय जाते है. दक्षिण-पस्चिम में नजफ्गद मजनू
का तिला, ओखला, तिमारपुर, दासा, बादली की
सरे में भी संकेत मिले है.
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तीसरी सदी इ.पू. मौर्य
राजा अशोक के लघु दासा शिलालेख के साक्षय के अनुसार दिल्ली का इतिहास मौर्य साम्राज्य
के भाग के जितना पुराना है. तीसरी सदी इ.पू. का एक उत्कीर्णत शिलालेख बहपूर कालका
जी क्षेत्र दक्षिण दिल्ली), ईस्ट ऑफ केलाश, इस्कान मन्दिर के पास प्राप्त हुआ है.
इस साक्ष्य से पूस्टी होती है की बुओद्कल में दिल्ली बोद्ध व्यापार मार्ग पर विभिन
वंश के अनेक शासको ने अपने नाम की महिमा के लिये दिल्ली में अनेक राजधानी शहर
स्थापित किया. जैसे ही इतिहास अपना भेद खोलता है, हम दिल्ली को एक भव्य राजाओं को
शहर , रोमांचकारी, महान सस्क्रिटी के पुरूषों की भीड़ जिन्होंने अपने पीछे ऐसे लोगो
को छोड़ा जिन्होंने प्रसिद्ध वस्तूकिर्टी का निर्मद किया है जेसे- कूतूब्मिनर, दीवाने-आम,
लाल किले में मोती मस्जिद शहर के लिये पहली बार 12वि सदी के बाद से राजधानी के रूप
में भारत के इतिहास का पर्याय बन गया है.
यह मुस्लिम द्वारा
हिन्दुस्तान की राजधानी के रूप में उभरा. यह अनुमान लगाया गया है की मेहरुओली से शाजनाबाद
तक, 14 शहर दिल्ली के विभिन स्थानों पर स्थापित किये गए. इनमे सात के सवूत, कब्रों
के अव्सेसोl किलो, महलो, दुर्ग के दीवारों, द्वारा सहित और ख्न्ह्दारो के साथ
साफ़-साफ़ चिन्हींत किया जा सकते है.ये दर्शनीय स्थान बहुत रोचक है
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